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कविता

अस्तित्व

सुमित पी.वी.


अरे दोस्त!
तुम नहीं जानते
मेरा भी था
एक सुनहरा बचपन
उस वक्त मैंने भी देखे थे
कई सपने

मगर तुम नहीं जानते
क्या हुआ मेरे जीवन में
जो मैं था, अब नहीं रहा
कल कुछ और था
कभी लौट कर आएगा नहीं,
अपने इस मैला शरीर में
मगर तुम जानते नहीं
था मैं खुश उस जमाने में

आज जिंदगी सिर्फ एक बोझ है मेरे लिए
जीने में मजा नहीं तो क्या?
है इस जीवन का कोई फायदा?
तुम नहीं जानते कि मैं कौन हूँ?
मैं खुद को खोज रहा हूँ।
अपना अस्तित्व खोज रहा हूँ।
कौन हूँ मैं?


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